स्वाधीनता दिवस पर लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बार जनसंख्या विस्फोट पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने जनसंख्या वृद्धि पर रोक के लिए किसी कानून का जिक्र नहीं किया, किंतु इतना जरूर कहा कि माता-पिता आने वाले शिशु के भविष्य के बारे में सोचें।
वे विचार करें कि क्या उन्होंने नये शिशु की जरूरतें पूरी करने का इंतजाम कर लिया है।
यानी माता-पिता यह स्वयं निर्णय करें कि नवांगतुक की पढ़ाई-लिखाई-दवाई के साथ-साथ उसकी अन्य आवश्यकताएं पूरी करने के लिए संसाधनों की व्यवस्था हो गई है।
प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा कि छोटा परिवार रखना भी एक तरह की देशभक्ति है।
स्पष्ट है कि उन्होंने यह बात एक समाज सुधारक की दृष्टि से कही। 2014 में उन्होंने इसी लाल किले के प्राचीर से स्वच्छता आंदोलन चलाने का आहवान किया था और उसका परिणाम यह हुआ है कि हमारा देश स्वच्छता के प्रति आग्रही बन गया है।
खामियों और सही गलत आलोचनाओं के बावजूद हमारे शहर कस्बे, गांव, मुहल्ले पहले से जयादा साफ-सुथरे हुए हैं और जिस गति से देश भर में शौचालय निर्माण का कार्य चल रहा है, भारत अगले कुछ वर्षों में खुले में शौच से मुक्त हो जाएगा। अब सवाल यह है कि क्या छोटा परिवार रखने की मोदी अपील स्वच्छता आंदोलन की तरह ही सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ेंगी और यह भी कि आखिर प्रधानमंत्री को ऐसी अपील क्यों करनी पड़ी?
दरअसल देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1952-53 में हीं जनसंख्या वृद्धि पर चिंता जताई थी, लेकिन उन्होंने इसके लिए किया कुछ भी नहीं। लाल बहादुर शास्त्री के समय भी यह विचार आया कि जिस रफ्तार से जनसंख्या बढ़ रही है, उससे भविष्य में विषम परिस्थितियां पैदा हो सकती है।
शास्त्री जी को एक बार जब परिवार नियोजन से सम्बंधित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनाया गया, तो उन्होंने उसमें शरीक होने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनका परिवार चूॅंकि बड़ा है, इसलिए वे इस विषय पर बोलने के हकदार नहीं है।
खैर, शास्त्री जी बहुत जल्दी गोलोकवासी हो गए, लेकिन इंदिरा गांधी ने परिवार नियोजन को परिवार नियंत्रण के रूप में बदलने की भरपूर कोशिश की। वह इमरजेंसी का दौर था और इंदिरा जी ने इमरजेंसी लगाई ही थी अपनी कुर्सी की रक्षा के लिए, क्योंकि इलाहाबाद (अब प्रयाग) उच्च न्यायालय के जज न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने राय बरेली से इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध घोषित कर दिया था। उस समय देश भर में इंदिरा हटाओ, देश बचाओ का आंदोलन चल रहा था। आंदोलन का नेतृत्व जय प्रकाश नारायण कर रहे थे। सभी नेता जेलों में ठूंस दिये गये थे। अखबारों पर पाबंदी लगा दी गई थी और उसी बीच जबरन नसबंदी का ऐसा जोर चला कि जनता भड़क गई।
मीडिया पर प्रतिबंध के कारण अफवाहें भी फैली और एक अच्छा कदम गलत समय में गलत तरीके से उठाये जाने के कारण बदनाम हो गया। उसके बाद हम दो, हमारे दो का प्रचार-प्रसार तो खूब हुआ, लेकिन जनसंख्या बढ़ती रही और उसके बाद किसी प्रधानमंत्री ने इस बाबत किसी सख्त कानून के बारे में सोचा तक नहीं। अब नरेन्द्र मोदी ने जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जताई है और ऐसा लगता है कि वह इस दिशा में कोई कानूनी प्रावधान भी करेंगे। हालांकि अभी वह जन जागरूकता की ही बात कर रहे हैं।
परिवार नियोजन या जनसंख्या नियंत्रण पर किसी कानून की आहट भाव से सबसे ज्यादा खलबली मुसलमानों खासतौर से मुस्लिम वोटों के सौदागारों को होती है। आज भी मोदी की अपील के खिलाफ आवैसी की पार्टी विरोधी स्वर में बोलने लगी है। कुछ दूसरे मौलाना सभी कुलबुला रहे हैं। लेकिन यह मामला हिंदू, मुसलमान, सिख, इसाई का नहीं है। इसका संबंध देश की तरक्की से है और यदि जनसंख्या का प्रवाह वर्तमान गति से बढ़ता गया तो भारत कभी गरीबी से मुक्त नहीं हो पाएगा।
अभी प्रधानमंत्री वह रहे हैं कि 2022 तक सबको पक्का मकान मिल जाएगा, लेकिन उसके बाद जो आयेंगे, उनके लिए मकान कब बनेगा, कौन बनवाएगा, कितना बनवाएगा, कब तक बनवाता रहेगा और क्या सरकार यही करती रहेगी। अभी कहा जा रहा है कि तीन साल में देश के सभी घरों की बिजली मिल जायेगी, लेकिन उसके बाद भी हर पल अंधेरे घरों की संख्या बढ़ेगी।
सरकार तेजी से सड़कें बनवा रही है, लेकिन सड़कें कम पड़ती जा रही है। वाहन बढ़ रहे हैं। ट्रेनों में जगह नहीं है। बस खचाखच भरी रहती है। आलम यह है कि देश के बड़े हिस्से में पीने का पानी तक नसीब नहीं हो रहा है, खासतौर से गर्मी के दिनों में। आखिर सरकारें सस्ते अनाजों की कितनी दुकानें खोलेगी। सब्सिडी से देश कब तक चलेगा और फिर अनाज आएगा कहां से।
परिवार बढ़ रहे हैं, बंट रहे हैं। जोत घट रही है। जरूरतें बढ़ रही है। संसाधन घट रहे हैं। बेरोजगारों की फौज बढ़ रही है और हम सरकार पर ठीकरा फोड़कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं। यानी बच्चे हमारे और माई-बाप सरकार है।
ऐसा कब तक चलेगा। जिस देश में जनसंख्या के लिहाज से हर साल एक यूरोपीय देश जुड़ रहा हो, उस देश को बचाने-संभालने की जिम्मेदारी क्या हमारी नहीं है।
प्रधानमंत्री ने इन्हीं सब सवालों पर सोचने-विचारने के लिए लाल किले के प्राचीर से आहवान किया है। लेकिन यदि हम भाजपा विरोध या मोदी विरोध के कारण अब देश हित के इस काम में नहीं जुटे, तो बहुत देर हो जाएगी।
होना तो यह चाहिए कि जनता स्वयं केन्द्र और राज्य सरकारों से कहे कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोई न कोई कानून अवश्य बनना चाहिए। 1952 से आज तक जन जागरूकता अभियान बहुत चला है। आगे भी चलेगा, चले,
लेकिन साथ ही कुछ ऐसा कानून तो बनना ही चाहिए,जिससे जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार राष्ट्रहित में रूके।