Monday, February 17, 2020

जनसंख्या विस्फोट : प्रधानमंत्री जी, अपील नहीं, कानून बनाइए


स्वाधीनता दिवस पर लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बार जनसंख्या विस्फोट पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने जनसंख्या वृद्धि पर रोक के लिए किसी कानून का जिक्र नहीं किया, किंतु इतना जरूर कहा कि माता-पिता आने वाले शिशु के भविष्य के बारे में सोचें।



वे विचार करें कि क्या उन्होंने नये शिशु की जरूरतें पूरी करने का इंतजाम कर लिया है।

यानी माता-पिता यह स्वयं निर्णय करें कि नवांगतुक की पढ़ाई-लिखाई-दवाई के साथ-साथ उसकी अन्य आवश्यकताएं पूरी करने के लिए संसाधनों की व्यवस्था हो गई है।

प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा कि छोटा परिवार रखना भी एक तरह की देशभक्ति है।

स्पष्ट है कि उन्होंने यह बात एक समाज सुधारक की दृष्टि से कही। 2014 में उन्होंने इसी लाल किले के प्राचीर से स्वच्छता आंदोलन चलाने का आहवान किया था और उसका परिणाम यह हुआ है कि हमारा देश स्वच्छता के प्रति आग्रही बन गया है।


खामियों और सही गलत आलोचनाओं के बावजूद हमारे शहर कस्बे, गांव, मुहल्ले पहले से जयादा साफ-सुथरे हुए हैं और जिस गति से देश भर में शौचालय निर्माण का कार्य चल रहा है, भारत अगले कुछ वर्षों में खुले में शौच से मुक्त हो जाएगा। अब सवाल यह है कि क्या छोटा परिवार रखने की मोदी अपील स्वच्छता आंदोलन की तरह ही सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ेंगी और यह भी कि आखिर प्रधानमंत्री को ऐसी अपील क्यों करनी पड़ी?


दरअसल देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1952-53 में हीं जनसंख्या वृद्धि पर चिंता जताई थी, लेकिन उन्होंने इसके लिए किया कुछ भी नहीं। लाल बहादुर शास्त्री के समय भी यह विचार आया कि जिस रफ्तार से जनसंख्या बढ़ रही है, उससे भविष्य में विषम परिस्थितियां पैदा हो सकती है।


शास्त्री जी को एक बार जब परिवार नियोजन से सम्बंधित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनाया गया, तो उन्होंने उसमें शरीक होने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनका परिवार चूॅंकि बड़ा है, इसलिए वे इस विषय पर बोलने के हकदार नहीं है।


खैर, शास्त्री जी बहुत जल्दी गोलोकवासी हो गए, लेकिन इंदिरा गांधी ने परिवार नियोजन को परिवार नियंत्रण के रूप में बदलने की भरपूर कोशिश की। वह इमरजेंसी का दौर था और इंदिरा जी ने इमरजेंसी लगाई ही थी अपनी कुर्सी की रक्षा के लिए, क्योंकि इलाहाबाद (अब प्रयाग) उच्च न्यायालय के जज न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने राय बरेली से इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध घोषित कर दिया था। उस समय देश भर में इंदिरा हटाओ, देश बचाओ का आंदोलन चल रहा था। आंदोलन का नेतृत्व जय प्रकाश नारायण कर रहे थे। सभी नेता जेलों में ठूंस दिये गये थे। अखबारों पर पाबंदी लगा दी गई थी और उसी बीच जबरन नसबंदी का ऐसा जोर चला कि जनता भड़क गई।


मीडिया पर प्रतिबंध के कारण अफवाहें भी फैली और एक अच्छा कदम गलत समय में गलत तरीके से उठाये जाने के कारण बदनाम हो गया। उसके बाद हम दो, हमारे दो का प्रचार-प्रसार तो खूब हुआ, लेकिन जनसंख्या बढ़ती रही और उसके बाद किसी प्रधानमंत्री ने इस बाबत किसी सख्त कानून के बारे में सोचा तक नहीं। अब नरेन्द्र मोदी ने जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जताई है और ऐसा लगता है कि वह इस दिशा में कोई कानूनी प्रावधान भी करेंगे। हालांकि अभी वह जन जागरूकता की ही बात कर रहे हैं।


परिवार नियोजन या जनसंख्या नियंत्रण पर किसी कानून की आहट भाव से सबसे ज्यादा खलबली मुसलमानों खासतौर से मुस्लिम वोटों के सौदागारों को होती है। आज भी मोदी की अपील के खिलाफ आवैसी की पार्टी विरोधी स्वर में बोलने लगी है। कुछ दूसरे मौलाना सभी कुलबुला रहे हैं। लेकिन यह मामला हिंदू, मुसलमान, सिख, इसाई का नहीं है।  इसका संबंध देश की तरक्की से है और यदि जनसंख्या का प्रवाह वर्तमान गति से बढ़ता गया तो भारत कभी गरीबी से मुक्त नहीं हो पाएगा।


अभी प्रधानमंत्री वह रहे हैं कि 2022 तक सबको पक्का मकान मिल जाएगा, लेकिन उसके बाद जो आयेंगे, उनके लिए मकान कब बनेगा, कौन बनवाएगा, कितना बनवाएगा, कब तक बनवाता रहेगा और क्या सरकार यही करती रहेगी। अभी कहा जा रहा है कि तीन साल में देश के सभी घरों की बिजली मिल जायेगी, लेकिन उसके बाद भी हर पल अंधेरे घरों की संख्या बढ़ेगी।


सरकार तेजी से सड़कें बनवा रही है, लेकिन सड़कें कम पड़ती जा रही है। वाहन बढ़ रहे हैं। ट्रेनों में जगह नहीं है। बस खचाखच भरी रहती है। आलम यह है कि देश के बड़े हिस्से में पीने का पानी तक नसीब नहीं हो रहा है, खासतौर से गर्मी के दिनों में। आखिर सरकारें सस्ते अनाजों की कितनी दुकानें खोलेगी। सब्सिडी से देश कब तक चलेगा और फिर अनाज आएगा कहां से।


परिवार बढ़ रहे हैं, बंट रहे हैं। जोत घट रही है। जरूरतें बढ़ रही है। संसाधन घट रहे हैं। बेरोजगारों की फौज बढ़ रही है और हम सरकार पर ठीकरा फोड़कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं। यानी बच्चे हमारे और माई-बाप सरकार है।

ऐसा कब तक चलेगा। जिस देश में जनसंख्या के लिहाज से हर साल एक यूरोपीय देश जुड़ रहा हो, उस देश को बचाने-संभालने की जिम्मेदारी क्या हमारी नहीं है।

प्रधानमंत्री ने इन्हीं सब सवालों पर सोचने-विचारने के लिए लाल किले के प्राचीर से आहवान किया है। लेकिन यदि हम भाजपा विरोध या मोदी विरोध के कारण अब देश हित के इस काम में नहीं जुटे, तो बहुत देर हो जाएगी।

होना तो यह चाहिए कि जनता स्वयं केन्द्र और राज्य सरकारों से कहे कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोई न कोई कानून अवश्य बनना चाहिए। 1952 से आज तक जन जागरूकता अभियान बहुत चला है। आगे भी चलेगा, चले,

लेकिन साथ ही कुछ ऐसा कानून तो बनना ही चाहिए,जिससे जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार राष्ट्रहित में रूके।



Friday, February 14, 2020

Bihar News

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Wednesday, February 12, 2020

Kejriwal meets Delhi L-G Anil Baijal

 A day after Aam Aadmi Party got a resounding victory in Delhi elections, party chief Arvind Kejriwal on Wednesday called on Lieutenant Governor Anil Baijal at the Raj Niwas here, ahead of government formation.



The meeting was part of the procedure of government formation.

After meeting Baijal, Kejriwal returned to his residence where he will hold another meeting with the newly elected Aam Aadmi Party MLAs.

The legislators have been coming to his residence since morning. They will elect him as the leader of the legislature party, following which he will stake claim to form the government.
The President appoints the Chief Minister and his Cabinet in Delhi.

According to the party, Kejriwal’s swearing-in as the Delhi Chief Minister for the third time will take place on February 16 at the historic Ramlila Maidan.

MLAs elect, including Gopal Rai, Manish Sisodia, Somnath Bharti, Amanullah Khan and close to 30-40 others have been here for the meeting, while others are on the way.

The MLAs are allowed to bring their spouse for the meeting at Kejriwal’s residence.

Senior party leader Sanjay Singh has also reached Kejriwal’s residence for the meeting.

Of the 70 assembly seats in Delhi, AAP has won on 62 seats while eight went to its nearest rival, the BJP.


Thursday, February 6, 2020

दिल्ली में भाजपा और आम आदमी पार्टी सभी सीटों पर आमने-सामने

  • बदला चुनावी परिदृश्य: बदलते राजनीतिक समीकरण से आम आदमी पार्टी को 2015 दोहराना मुश्किल

सियाराम पांडेय ‘शांत’/इनसाइट ऑनलाइन न्यूज़

दिल्ली के दिल में क्या है, इसे जानने को सभी बेताब हैं। चुनावी जनसभाओं, रैलियों और रोड शो के जरिये राजनीतिक दलों ने दिल्ली की जनता के दिल में उतरने की कोशिश भी की। कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी के घोषणापत्र में एक ही तरह की चीजें हैं, अंतर सिर्फ शब्दों का है। बड़ा सवाल है कि दिल्ली किसकी? जो नब्ज पकड़े, उसकी समस्याओं को मिटाए उसकी? फकत कोरे वादों से दाल नहीं गलने वाली। दिल्ली देश का सबसे जागरूक शहर है। यहां के मतदाता सोच-समझकर ही निर्णय लेते हैं। दिल्ली देशभर का प्रतिनिधि शहर है इसलिए यहां का प्रतिनिधि भी खास होगा और सरकार भी।



अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मतदाताओं से बेहद भावनात्मक अंदाज में कहा है कि अंतत: बेटा ही दिल्ली के काम आएगा। सवाल यह उठता है कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मूल निवासी तो हैं नहीं, वे हरियाणा से आते हैं। जो भी नेता दिल्लीवासियों से इस तरह की अपील कर रहे हैं, वे भी कदाचित दिल्ली के मूल निवासी नहीं हैं।

दिल्ली देश का दिल है और यहां देश ही नहीं, देश के बाहर के लोग भी निवास करते हैं। दिल्ली देश की राजधानी तो है ही, एक मुकम्मल राष्ट्रग्राम के रूप में तब्दील हो चुकी है तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि दिल्ली स्वीकार भी करती है और सत्कार भी करती है। जो यहां आता है, दिल्ली उसके दिल में और वह दिल्ली के दिल में बस जाता है। दिल्ली में बाहर से आकर रहने वालों का भी यहां के विकास में भारी योगदान है लेकिन यहां की सरकार जिस तरह बिहार, पूर्वांचल की उपेक्षा कर रही है, उचित नहीं है।

हाल के दिनों में दिल्ली में राजनीतिक समीकरण बदले हैं। अपनी हालिया घोषणाओं जिन्हें चुनावी भी कहा जा सकता है और लोकलुभावन भी, उसके जरिए केजरीवाल ने दिल्ली में जीत लगभग पक्की कर ली थी लेकिन चुनावी माह के पहले दिन से ही भाजपा ने जिस तरह की घोराबंदी की, उससे समीकरण पलटते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के एक बड़े नेता ने तो इस मामले में लगभग हथियार ही डाल दिए हैं।

केजरीवाल ने पार्टी का घोषणापत्र पेश करते हुए कहा कि वह स्कूलों में देशभक्ति का पाठ्यक्रम चलाएंगे। भाजपा विकास और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। जामिया मिलिया और शाहीनबाग के मुद्दे पर वह आम आदमी पार्टी और उसके रणनीतिकारों को घेर रही है। अरविंद केंजरीवाल के अपने पैंतरे हैं। उन्होंने चुनावी कार्यक्रमों में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों का रुख नहीं किया। वे नहीं चाहते कि भाजपा को हिंदू मतों के ध्रुवीकरण का लाभ मिले। उन्हें पता है कि मुस्लिम मत उन्हें मिलेंगे ही लेकिन हिंदू मतदाता बिदक गए तो उनका बना-बनाया खेल बिगड़ जाएगा।

प्रधानमंत्री ने पंजाब, बिहार और यूपी की अनदेखी का सवाल उठाकर केजरीवाल को पटखनी देने की कोशिश की लेकिन केजरीवाल भाजपा नेतृत्व से दिल्ली का सीएम का चेहरा बताने की बात कहकर दिल्ली भाजपा में फूट डालना चाहते हैं। उन्हें पता है कि भाजपा ने मनोज तिवारी का नाम लिया तो दिल्ली और भाजपा के वे नेता जिनकी सीएम पद पर नजर है, बिदक जाएंगे और अगर उनमें से किसी का नाम लिया तो पूर्वांचल और बिहार की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ेगी। भाजपा इस तथ्य से वाकिफ है इसलिए वह केजरीवाल के जाल में फंसने से रही।

भाजपा ने संकल्प पत्र, कांग्रेस ने घोषणापत्र और आम आदमी पार्टी ने गारंटी कार्ड जारी किया है। दिल्ली में 200 यूनिट मुफ्त यूनिट बिजली देने का वादा अगर आप और भाजपा ने किया है तो कांग्रेस ने 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने की बात की है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के ‘गारंटी कार्ड’ में हर घर में पानी, प्रदूषण मुक्त शहर, महिला सुरक्षा, मुफ्त बिजली (200 यूनिट), भूमिगत केबल, अवैध कॉलोनियों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर, जहां झुग्गी वहां घर, सार्वजनिक परिवहन, शिक्षा, स्वच्छ दिल्ली और शौचालय संबंधी वादे किए हैं। वहीं भाजपा ने भी अपने संकल्प पत्र में कुछ खास वादे किए हैं।

दिल्ली में 10 नए कॉलेज और 200 नए स्कूल खोलने का तो उसने वादा किया ही है, नौवीं कक्षा के छात्रों को साइकिल देने और कॉलेज जाने वाली छात्राओं को इलेक्ट्रिक स्कूटी देने का भी वादा किया है। गरीब विधवा की बेटी की शादी के लिए 51 हजार रुपये उपहार, पांच वर्ष में कम से कम 10 लाख बेरोजगारों को रोजगार देने की बात कही है।

दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त पारदर्शी सरकार देने, गरीबों को दो रुपये किलो आटा, नई अधिकृत कॉलोनियों के विकास के लिए कॉलोनी डेवलपमेंट बोर्ड बनाने, विकास को प्राथमिकता देने, कूड़े का पहाड़ खत्म करने, तीन से पांच साल में टैंकर मुक्त दिल्ली करने, नल से शुद्ध जल देने और मौजूदा सरकार में दी जा रही बिजली-पानी सब्सिडी जारी रखने का वादा किया है। कांग्रेस के घोषणापत्र में 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने, 300-400 यूनिट तक बिजली इस्तेमाल करने पर 50 प्रतिशत की छूट देने, 20 हजार लीटर तक पानी मुफ्त देने और इससे कम खर्च करने पर 30 पैसा प्रति लीटर का कैशबैक देने की बात कही है।

सरकारी नौकरियों में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण, ट्रांसजेंडरों के लिए शीला पेंशन योजना के तहत 5 हजार रुपये प्रतिमाह का प्रावधान, स्नातकों को हर माह 5 हजार रुपये और परास्नातकों को 7,500 रुपये बेरोजगारी भत्ता देने की बात कही गयी है। तीनों दलों ने जनता से बड़े-बड़े चुनावी वादे किए हैं लेकिन जनता को तय करना है कि वह किसके वादे पर यकीन करे।
इसमें संदेह नहीं कि दिल्ली के चुनाव में शाहीनबाग बड़ा मुद्दा है। 

नागरिकता संशोधन कानून में बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आए ईसाइयों, पारसियों, सिंधियों और पंजाबियों को भारतीय नागरिकता देने की बात है। दिल्ली में सिंधी, पंजाबी और ईसाई ज्यादा हैं, जाहिर-सी बात है कि इनका झुकाव भाजपा की ओर होगा। पिछले चुनाव में कुमार विश्वास और योगेंद्र यादव आम आदमी पार्टी के साथ थे लेकिन अब उनकी राह अलग है।

मनोज तिवारी दृढ़ता से पूर्वांचल और बिहार की झंडाबरदारी कर रहे हैं। गोरखपुर के सांसद रविकिशन और खेसारी लाल भी दिल्ली को मथ रहे हैं। भाजपा ने जिस तरह अपने कार्यकर्ताओं को प्रचार के मोर्चे पर लगा रखा है और खुद अमित शाह ने भी डोर डू डोर पर्चे बांटे, उसका लाभ भाजपा को मिल सकता है। 

बसपा प्रमुख मायावती ने दिल्ली की सभी 70 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। दिल्ली में दलितों की 25 लाख आबादी है और यहां इनके लिए 12 सीटें आरक्षित हैं। दर्जन भर सीटें ऐसी हैं, जहां दलितों की अच्छी-खासी तादाद है। ऐसे में बसपा इन तीनों दलों का खेल तो बिगाड़ ही सकती है। लंबे समय तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस का प्रदर्शन भी इस चुनाव को अपने तरीके से प्रभावित करेगा। कुल मिलाकर अभी संघर्ष आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच ही है।