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बदला चुनावी परिदृश्य: बदलते राजनीतिक समीकरण से आम आदमी पार्टी को 2015 दोहराना मुश्किल
सियाराम पांडेय ‘शांत’/इनसाइट ऑनलाइन न्यूज़
दिल्ली के दिल में क्या है, इसे जानने को सभी बेताब हैं। चुनावी जनसभाओं, रैलियों और रोड शो के जरिये राजनीतिक दलों ने दिल्ली की जनता के दिल में उतरने की कोशिश भी की। कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी के घोषणापत्र में एक ही तरह की चीजें हैं, अंतर सिर्फ शब्दों का है। बड़ा सवाल है कि दिल्ली किसकी? जो नब्ज पकड़े, उसकी समस्याओं को मिटाए उसकी? फकत कोरे वादों से दाल नहीं गलने वाली। दिल्ली देश का सबसे जागरूक शहर है। यहां के मतदाता सोच-समझकर ही निर्णय लेते हैं। दिल्ली देशभर का प्रतिनिधि शहर है इसलिए यहां का प्रतिनिधि भी खास होगा और सरकार भी।
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मतदाताओं से बेहद भावनात्मक अंदाज में कहा है कि अंतत: बेटा ही दिल्ली के काम आएगा। सवाल यह उठता है कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मूल निवासी तो हैं नहीं, वे हरियाणा से आते हैं। जो भी नेता दिल्लीवासियों से इस तरह की अपील कर रहे हैं, वे भी कदाचित दिल्ली के मूल निवासी नहीं हैं।
दिल्ली देश का दिल है और यहां देश ही नहीं, देश के बाहर के लोग भी निवास करते हैं। दिल्ली देश की राजधानी तो है ही, एक मुकम्मल राष्ट्रग्राम के रूप में तब्दील हो चुकी है तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि दिल्ली स्वीकार भी करती है और सत्कार भी करती है। जो यहां आता है, दिल्ली उसके दिल में और वह दिल्ली के दिल में बस जाता है। दिल्ली में बाहर से आकर रहने वालों का भी यहां के विकास में भारी योगदान है लेकिन यहां की सरकार जिस तरह बिहार, पूर्वांचल की उपेक्षा कर रही है, उचित नहीं है।
हाल के दिनों में दिल्ली में राजनीतिक समीकरण बदले हैं। अपनी हालिया घोषणाओं जिन्हें चुनावी भी कहा जा सकता है और लोकलुभावन भी, उसके जरिए केजरीवाल ने दिल्ली में जीत लगभग पक्की कर ली थी लेकिन चुनावी माह के पहले दिन से ही भाजपा ने जिस तरह की घोराबंदी की, उससे समीकरण पलटते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के एक बड़े नेता ने तो इस मामले में लगभग हथियार ही डाल दिए हैं।
केजरीवाल ने पार्टी का घोषणापत्र पेश करते हुए कहा कि वह स्कूलों में देशभक्ति का पाठ्यक्रम चलाएंगे। भाजपा विकास और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। जामिया मिलिया और शाहीनबाग के मुद्दे पर वह आम आदमी पार्टी और उसके रणनीतिकारों को घेर रही है। अरविंद केंजरीवाल के अपने पैंतरे हैं। उन्होंने चुनावी कार्यक्रमों में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों का रुख नहीं किया। वे नहीं चाहते कि भाजपा को हिंदू मतों के ध्रुवीकरण का लाभ मिले। उन्हें पता है कि मुस्लिम मत उन्हें मिलेंगे ही लेकिन हिंदू मतदाता बिदक गए तो उनका बना-बनाया खेल बिगड़ जाएगा।
प्रधानमंत्री ने पंजाब, बिहार और यूपी की अनदेखी का सवाल उठाकर केजरीवाल को पटखनी देने की कोशिश की लेकिन केजरीवाल भाजपा नेतृत्व से दिल्ली का सीएम का चेहरा बताने की बात कहकर दिल्ली भाजपा में फूट डालना चाहते हैं। उन्हें पता है कि भाजपा ने मनोज तिवारी का नाम लिया तो दिल्ली और भाजपा के वे नेता जिनकी सीएम पद पर नजर है, बिदक जाएंगे और अगर उनमें से किसी का नाम लिया तो पूर्वांचल और बिहार की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ेगी। भाजपा इस तथ्य से वाकिफ है इसलिए वह केजरीवाल के जाल में फंसने से रही।
भाजपा ने संकल्प पत्र, कांग्रेस ने घोषणापत्र और आम आदमी पार्टी ने गारंटी कार्ड जारी किया है। दिल्ली में 200 यूनिट मुफ्त यूनिट बिजली देने का वादा अगर आप और भाजपा ने किया है तो कांग्रेस ने 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने की बात की है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के ‘गारंटी कार्ड’ में हर घर में पानी, प्रदूषण मुक्त शहर, महिला सुरक्षा, मुफ्त बिजली (200 यूनिट), भूमिगत केबल, अवैध कॉलोनियों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर, जहां झुग्गी वहां घर, सार्वजनिक परिवहन, शिक्षा, स्वच्छ दिल्ली और शौचालय संबंधी वादे किए हैं। वहीं भाजपा ने भी अपने संकल्प पत्र में कुछ खास वादे किए हैं।
दिल्ली में 10 नए कॉलेज और 200 नए स्कूल खोलने का तो उसने वादा किया ही है, नौवीं कक्षा के छात्रों को साइकिल देने और कॉलेज जाने वाली छात्राओं को इलेक्ट्रिक स्कूटी देने का भी वादा किया है। गरीब विधवा की बेटी की शादी के लिए 51 हजार रुपये उपहार, पांच वर्ष में कम से कम 10 लाख बेरोजगारों को रोजगार देने की बात कही है।
दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त पारदर्शी सरकार देने, गरीबों को दो रुपये किलो आटा, नई अधिकृत कॉलोनियों के विकास के लिए कॉलोनी डेवलपमेंट बोर्ड बनाने, विकास को प्राथमिकता देने, कूड़े का पहाड़ खत्म करने, तीन से पांच साल में टैंकर मुक्त दिल्ली करने, नल से शुद्ध जल देने और मौजूदा सरकार में दी जा रही बिजली-पानी सब्सिडी जारी रखने का वादा किया है। कांग्रेस के घोषणापत्र में 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने, 300-400 यूनिट तक बिजली इस्तेमाल करने पर 50 प्रतिशत की छूट देने, 20 हजार लीटर तक पानी मुफ्त देने और इससे कम खर्च करने पर 30 पैसा प्रति लीटर का कैशबैक देने की बात कही है।
सरकारी नौकरियों में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण, ट्रांसजेंडरों के लिए शीला पेंशन योजना के तहत 5 हजार रुपये प्रतिमाह का प्रावधान, स्नातकों को हर माह 5 हजार रुपये और परास्नातकों को 7,500 रुपये बेरोजगारी भत्ता देने की बात कही गयी है। तीनों दलों ने जनता से बड़े-बड़े चुनावी वादे किए हैं लेकिन जनता को तय करना है कि वह किसके वादे पर यकीन करे।
इसमें संदेह नहीं कि दिल्ली के चुनाव में शाहीनबाग बड़ा मुद्दा है।
नागरिकता संशोधन कानून में बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आए ईसाइयों, पारसियों, सिंधियों और पंजाबियों को भारतीय नागरिकता देने की बात है। दिल्ली में सिंधी, पंजाबी और ईसाई ज्यादा हैं, जाहिर-सी बात है कि इनका झुकाव भाजपा की ओर होगा। पिछले चुनाव में कुमार विश्वास और योगेंद्र यादव आम आदमी पार्टी के साथ थे लेकिन अब उनकी राह अलग है।
मनोज तिवारी दृढ़ता से पूर्वांचल और बिहार की झंडाबरदारी कर रहे हैं। गोरखपुर के सांसद रविकिशन और खेसारी लाल भी दिल्ली को मथ रहे हैं। भाजपा ने जिस तरह अपने कार्यकर्ताओं को प्रचार के मोर्चे पर लगा रखा है और खुद अमित शाह ने भी डोर डू डोर पर्चे बांटे, उसका लाभ भाजपा को मिल सकता है।
बसपा प्रमुख मायावती ने दिल्ली की सभी 70 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। दिल्ली में दलितों की 25 लाख आबादी है और यहां इनके लिए 12 सीटें आरक्षित हैं। दर्जन भर सीटें ऐसी हैं, जहां दलितों की अच्छी-खासी तादाद है। ऐसे में बसपा इन तीनों दलों का खेल तो बिगाड़ ही सकती है। लंबे समय तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस का प्रदर्शन भी इस चुनाव को अपने तरीके से प्रभावित करेगा। कुल मिलाकर अभी संघर्ष आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच ही है।
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