उतिष्ठित, जाग्रत, प्राप्य, वराणिबोधत्। उठो जागो और बोध प्राप्त करो।
इन शब्दों में मानव के लिए संदेश है कि हे मानव! इस आत्मा को जगाकर इसपर विचार करो कि तुम्हें यह मनुष्य जन्म जो मिला है, यह परमात्मा की प्राप्ति करके चैरासी लाख योनियों से मुक्त होने का अवसर है। ग्रंथों के अनुसार बढ़े भाग्य से मनुष्य जन्म मिलता है। इसमें केवल दुनियावी कामों में जीवन बिता दिया तो ये बाजी हारकर चले जाओगे।
जीवन का मूल उद्देश्य प्रभु की जानकारी करके इसका बोध हासिल करके आवागमन के चक्कर से मुक्त होना है। रामचरित मानस में लिखा हैः-
निद्रा, भोजन, भोग, भय से पशु पुरख समान। ज्ञान अधिक इक नरन् में ज्ञान बिना पशु जान।।
भाव, पशु और इंसान अपने आराम करने की सुरक्षित स्थान की व्यवस्था सूझ-बूझ से करते हैं। भोजन भी अपनी रूचि के अनुसार जानवर एवं इंसान सोच समझ कर करते हैं। हाथी जैसे मन भर खाता है पर केवल शाकाहार ही खाता है परन्तु शेर के आगे अच्छे से अच्छा पकवान अगर शकाहार है तो वह नहीं खाएगा। खाना चाहे पशु है या मानव बुद्धि से सोच समझ कर ही खाता है। कहीं कोई फर्क नहीं।
परिवार से भी मनुष्यों एवं पशुओं के वंश बढ़ते जाते हैं। आत्म रक्षा के प्रति जैसे मनुष्य सजग है, वैसे ही छोटे से छोटा जानवर भी अपने आपको बचाता है, उसे भी भय लगता है। ज्ञान (प्रभु परमात्मा की जानकारी) मनुष्य को पशुओं से अलग करता है, अन्यथा मनुष्य भी ज्ञान के बिना पशु के समान जीवन जी कर चला जाता है। श्री कृष्ण जी ने कहा हैः-
बहुनाम् जन्मनाम् अन्ते ज्ञानवान माम् प्रपद्यते। वासुदेवः सर्वम् इति स महात्मा सुदुर्लभः।। 9-11
बहुत से जन्मों के बाद ज्ञानवान मेरी शरण में आता है। वह महात्मा दुर्लभ होता है। उस ज्ञानवान के लिए वासुदेव (जो सब देवताओं में वास करता है और जिसमें सभी देवता वास करते हैं) ही सबकुछ हैं, भाव वह एक प्रभु को ही सबकुछ समझता है, उनके तुल्य किसी और की पूजा उपासना को महत्व नहीं देता। प्रभु परमात्मा का ज्ञान प्राप्त करने की विधि गीता के चैथे अध्याय के 34वें श्लोक में बताईः-
तत् विद्धि प्रणिपातेण् परिप्रश्नेन सेवया। उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानम् ज्ञानिनः तत्व दर्शिनः।।
परमात्मा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए ज्ञानियों, तत्वदर्शियों (जिन्होंने परमात्मा के निराकार रूप के दर्शन किए हैं) के पास जाकर चरणों में नमस्कार करके, सेवा करके, विनय पूर्वक प्रश्न करो, वे ज्ञानीजन तुझे ज्ञान का उपदेश देंगे। अर्जुन ने भी प्रभु के निराकार रूप को देखने के लिए विनती की कि अगर आप मुझे निराकार रूप के दर्शन के योग्य समझते हैं तो कृपा करके मुझे अपने अविनाशी रूप के दर्शन दें।
मीरा जी को भी इसी युग में प्रभु के अविनाशी रूप के दर्शन मुझ रविदास के द्वारा हुए। हर युग में यह जानकारी सत्गुरु की शरण में आकर हुई है और किन्हीं भी साधनों से प्रभु को प्राप्त नहीं किया जा सकता। गुरु गीता के अनुसारः-
न जपः न तपः न पुण्य न तीर्थम् न यज्ञ न दानम् एव च गुरुः तत्वम् अविज्ञाय सर्व व्यर्थम् भवेत प्रिये।
गुरु से तत्व रूप को जाने बिना जप तप यज्ञ दान पुण्य तीर्थ आदि सब व्यर्थ है। गीता में श्रीकृष्ण जी ने कहाः-
न अहम् वेदैः न तपसा न दानेन न च इज्जया।
शक्य एवम्-विद्यः द्रष्टुम दृष्टवान असि माम् यथा।। 11-53
शक्य एवम्-विद्यः द्रष्टुम दृष्टवान असि माम् यथा।। 11-53
मेरा यह निराकार रूप जिसने देखा है, उसी के द्वारा देखा जाना संभव है। न वेदों के पठन से, न दान से, न तप से और न यज्ञ आदि के द्वारा इसे जाना जा सकता है। केवल सत्गुरु ही प्रभु के अविनाशी रूप को प्रकट करके दिखा देता है। अवतार बाणी में विदित हैः-
न जप अंदर न तप अंदर न मिलया न मिलना ए।
बिन माझी सागर विच बेड़ा न ठिलया न ठिलना ए।।
बिन माझी सागर विच बेड़ा न ठिलया न ठिलना ए।।
ए मिलदा ए मिल सकदा ए मुर्शद दे इक इशारे नाल, कहे अवतार पूरा गुरु छिन विच कर देंदा ए मायाजाल
सत्गुरु ही ज्ञान उजाला (रोशनी) देकर माया और मायापति प्रभु परमात्मा को भिन्न करके बता सकता है। इंसान भौतिक पदार्थों की तरफ तो प्रयासरत रहता है, परन्तु प्रभु की प्राप्ति की तरफ सोया हुआ है। श्री कृष्ण जी ने गीता के एक श्लोक में इसके बारे में कहाः-
या निशा सर्वभूतानाम् तस्याम् जागर्ति संयमी।
यस्याम् जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।। 2-69
यस्याम् जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।। 2-69
ए मिलदा ए मिल सकदा ए मुर्शद दे इक इशारे नाल, कहे अवतार पूरा गुरु छिन विच कर देंदा ए मायाजाल
सत्गुरु ही ज्ञान उजाला (रोशनी) देकर माया और मायापति प्रभु परमात्मा को भिन्न करके बता सकता है। इंसान भौतिक पदार्थों की तरफ तो प्रयासरत रहता है, परन्तु प्रभु की प्राप्ति की तरफ सोया हुआ है। श्री कृष्ण जी ने गीता के एक श्लोक में इसके बारे में कहाः-
या निशा सर्वभूतानाम् तस्याम् जागर्ति संयमी।
यस्याम् जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।। 2-69
यस्याम् जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।। 2-69
भु परमात्मा को पाने की कामना करने वाला मनुष्य भौतिक वस्तुओं के प्रति उदासीन भाव रखता है। उसके हृदय में ईश्वर को पाने की तड़प होती है, वह उसी के प्रति जागरूक है, जागा हुआ है, यत्नशील है। ईश्वर को पाकर ही मनुष्य मानव योनि में चैरासी लाख योनियों के आवागमन के चक्कर से मुक्त हो सकता है। अवतार बाणी में भी इंसान को जगाने का प्रयास किया हैः-
मानुष जन्म आखरी पौड़ी तिलक गय ते वारी गई।
कहे अवतार चैरासी वाली घोल घमाई सारी गई।।
कहे अवतार चैरासी वाली घोल घमाई सारी गई।।
जिसके हृदय में प्रभु के दर्शन की प्यास है उसपर श्री गुरु नानक देव जी बलिहार जाते हैं।
जिस जन को प्रभ दरस प्यासा।
नानक ताके बल बल जासा।।
नानक ताके बल बल जासा।।
परमात्मा की प्राप्ति के उपाय धार्मिक ग्रंथों में बताए हैं।
पूरे गुर का सुन उपदेश पारब्रह्म निकट कर पेख।
पूर्ण सत्गुरु इसका ज्ञान देकर इस भव सागर से पार लगा देता है।
Source:- Insightonlinenews
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